यह वही सेन्ट्रल कारावास है जहां २५०० कैदी एक ही साथ रहते थे| यह वही विस्तृत कारागृह है जहां १८९७ में लोकमान्य तिलक पत्थर तोड़ कर सख्त मजदूरी की सजा भुगत रहे थे| यह वही कारावास है जहां चाफेकर बंधु को फांसी दी गई थी| ऐसे इतिहास प्रसिद्ध व देशभक्त पुनीत ‘स्वराज्य मंदिर में’ रहने का योग गॉंधीजी को चार बार मिला| राजद्रोह का मुकदमा चला और सन् १९२२ के मार्च माह में गॉंधीजी को यरवड़ा जेल में लाया गया| यहॉं पर गॉंधीजी ने १००-११५ किताबें पढ़ीं| उपनिषद्, महाभारत, ज्ञानेश्वरी जैसे पौराणिक ग्रंथों ने भी गॉंधीजी के बहुत से विकारों को जलाया| इसलिए शास्त्रों की जरूरत ज्ञात होने लगी| समय बीतने के बाद ५ फरवरी १९२४ के दिन बिना किसी शर्त के उन्हें रिहा किया गया|
ऐतिहासिक दांडी मार्च के बाद, कराडी से ४ मई १९३० की मध्यरात्रि को गॉंधीजी की गिरफ्तारी हुई, और वे यरवडा कारागृह में लाये गये| जितनी खुशी से गॉंधीजी राजद्वार जाते थे उतनी ही खुशी से जेल में भी जाते थे| द्वितीय गोलमेज सम्मेलन के बाद भारत पहुंचते ही यरवडा जेल बापू की मेहमाननवाजी के लिए तैयार थी, सरकार ने ४ जनवरी १९३२ में मुंबई से गॉंधीजी को गिरफ्तार किया और यरवडा जेल में लाये| इस बार यरवडा में गॉंधीजी का आगमन इतिहास के पन्नों पर अंकित हुआ| ‘अस्पृश्यता हिंदू धर्म में से नष्ट करने के लिए मैं मृत्यु आने तक प्रयत्न करूंगा,’ ऐसी घोषणा गॉंधीजी ने दूसरे गोलमेज परिषद में किया था| पृथक् निर्वाचन मंडल की मॉंग का प्रतिकार करने के लिए २० सितम्बर के दिन गॉंधीजी ने आमरण अनशन करने का निर्णय लिया| ६३ वर्ष का यह तपस्वी भीष्म प्रतिज्ञा ले चुका था| इसीलिए पूर्ण राष्ट्र के प्राण व्याकुल हुए| मुंबई में नेताओं की परिषद हुई| हरिजनों के लिए मंदिर खुले रखे गये| हरिजनों के नेता डॉ. अंबेडकर ने भी इस समिति को मान्यता दी, और ‘यरवडा करार’ का जन्म हुआ| इस प्राणयज्ञ का स्वागत करने के लिए रवीन्द्रनाथ टैगोर, कस्तूरबा, स्वरूपा राणी, वासंतीदेवी, कमला नेहरू जैसे कई दिग्गज लोकनेता यरवडा पधारे थे| इस समय यरवडा जेल न रहते हुए एक राष्ट्रीय परिषद का केन्द्र बनी, गॉंधीजी का एक आश्रम ही बन गई थी| हरिजन साप्ताहिक की शुरुआत यहॉं से की थी| इसी तरह गॉंधीजी जैसे महापुरुष को संभाल के यरवडा जेल भी पावन हो गई|
महाराष्ट्र के माध्यम से स्वराज्य की कल्पना प्रबल रूप से सिद्ध होगी-गॉंधीजी ने यह पहले से जान लिया था| उन्होंने जितने क्षेत्रों में सिद्धि हासिल की उनमें ज्यादा से ज्यादा महाराष्ट्र के साथ जुड़कर की गई गतिविधियां हैं| सामान्य मनुष्य के लिए जो सम्भव न थीं, ऐसी सिद्धियां उन्होंने सभी क्षेत्रों में हासिल की| गॉंधीजी एक व्यक्ति से विशेष वह एक संस्था थे, वह भी विराट संस्था| पं. जवाहरलाल के शब्दों में कहें तो ‘वे अनंत वैविध्यमय व्यक्तित्व की एक परिभाषा थे|’
सत्य, अहिंसा को अपने जीवन में उतारकर जीवनभर के लिए भ्रातृभावना को व्यापक बनाने वाले बापू को हत्यारे की गोली के जरिए ही शांति मिली और वह घटना भी किसी महाराष्ट्र से संबंध रखनेवाले व्यक्ति ने की| गॉंधीजी के जीवन को देखकर ऐसा लगता है मानो उन्होंने हिन्द की आज़ादी के लिए ही जन्म लिया हो, आजादी प्राप्त हो गयी और अपने जीवन को समाप्त कर लिया| गॉंधीजी के हृदय की विशालता और उदारता को देखते ही समुद्र की याद आ जाती है| उनकी भव्यता हमें हिमालय की झॉंकी करवाता है| महाराष्ट्र और गॉंधीजी के संबंध में यह कहना उतना ही चरितार्थ होगा की गॉंधीजी ने महाराष्ट्र की शान बढ़ायी और महाराष्ट्र ने गॉंधीजी की|
सन्दर्भ -
१) चंद्रशेखर धर्माधिकारी, गॉंधी मेरी नजर में, पृ. १३१; २) नवजीवन, २९-५-१९२१; ३) संपूर्ण गॉंधी वॉंड़्मय, खण्ड ३१, पृ. २०७; ४) संपूर्ण गॉंधी वॉंड़्मय, खण्ड ३३, पृ. २०६; ५) प्यारेलाल, महात्मा गॉंधीः पूर्णाहुति खण्ड ४, पृ. ४१६; ६) चरहरींार ॠरपवहळ, अश्रश्रळशव र्झीलश्रळलरींळेपी, ि. ७८; ७) अवन्तिकाबाई गोखले कृत ‘महात्मा गॉंधी’ में लोकमान्य तिलक की प्रस्तावना से साभार पृ. ८; ८) महाराष्ट्र व म. गॉंधी, पृ. ११३ से १२९; ९) सेवाग्राम आश्रम, (२००४)
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